मन का इक कोना
मन का इक कोना
मन का इक कोना, तुम बिन है आज भी सूना...
यूँ तो अब तन्हा बीत चुकी हैं सदियाँ,
बहाने जी लेने के सौ, ढूँढ लिया है इस मन ने,
फिर भी, क्युँ नहीं भरता मन का वो कोना ?
क्युँ चाहे वो बस तेरी ही यादों में खोना ?
मन का इक कोना, तुम बिन है आज भी सूना...
मिले जीवन के पथ कितने ही सहारे,
मन के उस जिद्दी से कोने से बस हम हैं हारे,
खाली खाली सा रहता हरदम वो कोना !
वो सूना सा कोना चाहे तेरा ही होना !
मन का इक कोना, तुम बिन है आज भी सूना...
खिलते रहें हैं फूल मन के हर कोने में,
इक पतझड़ सा क्यूँ छाया, मन के उस कोने में,
रिमझिम बारिश क्यूँ बरसे ना उस कोना ?
कोई फूल खिले ना क्यूँ उस कोना ?
मन का इक कोना, तुम बिन है आज भी सूना...
अधिकार तुम्हारा शायद उस कोने पर,
इक अविजित साम्राज्य है तुम्हारा उस कोने पर,
जीत सका तुझसे ना वापस कोई वो कोना !
मेरे अन्दर ही पराया मुझसे वो कोना !
मन का इक कोना, तुम बिन है आज भी सूना...