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Purushottam Kumar Sinha

Drama

3.4  

Purushottam Kumar Sinha

Drama

पन्ने अतीत के

पन्ने अतीत के

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पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


सदियों ये चुप थे पड़े,

काल-कवलित व धूल-धुसरित,

वक्त की परत में दबे,

मुक्त हुए, आज ये मुखर हुए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


फड़-फड़ाते से ये पन्ने,

खंड-खंड, अतीत के हैं ये पहने,

अब लगे हैं ये उतरने,

यूँ चेहरे अतीत के, मुखर हुए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


पल, था जो वहीं रुका,

पल, न था जिसको मैं जी सका,

शिकवे और शिकायतें,

रुके वो पल, मुझसे कर गए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


कुछ गैर अपनों से भले,

कभी, अपनों से ही गए थे छले,

पहचाने से वो चेहरे,

नजरों के सामने, गुजर गए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


गर्दिशों में वक्त की कहीं,

मुझ से, खोया था आईना मेरा,

शक्ल पुरानी सी मेरी,

अतीत की, गर्भ में दिख गए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


सामने था भविष्य मेरा,

अतीत की, उसी नींव पे ठहरा,

कुछ ईंटें उस नींव की,

वर्तमान में रखो, ये कह गए !


पन्ने अतीत के कुछ,

पलटे, अचानक हवाओं में बिखर गए !


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