मन का दर्द............
मन का दर्द............
कभी कभी मुझे मेरे ही लफ्ज़ धुंधले दिखाई देते है.......
कभी कभी कुछ छलक जाता है आँखों से कागज पे,.....
बहुत मन करता है कि कुछ न लिखू तुम्हें याद करके......
मगर ये मेरी नामुराद कलम कब मेरा कहा मानती है....
मै कुछ कहता हूँ,ये कुछ लिखती है अक्सर कागज पे....
और मुझे भी मजबूर करती है तेरे ख्यालों में खोने को....
मै कहता हु ख़ुशी लिख दो,मगर ये गम लिखती है.....
कभी दर्द कभी आँशु कभी तनहा लिखती है......
जैसे मै तुम्हारा हूँ जन्मों से,वैसे ही ये भी तुम्हारी है...
तुमने भी कभी मेरा कहा माना ही नही,........
बस ऐसे ही ये कभी मेरा कहा कंहा लिखती है.....
ये तेरी जफ़ा को वफा,मेरी मुहब्ब्त को फ़ना लिखती है.....
मेरी नामुराद कलम,कभी मेरा कहा कंहा लिखती है....