मन हूँ मैं
मन हूँ मैं
मन हूँ मैं
भर जाने दिये होते
क्या बिगाड़ा था मैंने
लगा डाली पाबंदियां मुझ पर
और ढेर सारे इल्जाम भी।
मसलन मैं बहुत चँचल हूँ
भागता रहता हूँ
यहाँ वहाँ
जाने कहाँ कहाँ
अलग कर देता हूँ
तुम्हें तुम्हारे मकसद से
कभी भर जाने दिये होते मुझे
देखते बिछ जाता हूँ मैं
आनन्द के लिये स्थिर मौन।
मुझे बांधने की कोशिश में
सदियां गुजार दी तुमने
जीवन की ऊर्जा खर्ची
इतने से कम श्रम
और ऊर्जा से तुम पा लेते
जीवन का आनन्द
और मैं खुद ही खो जाता
उसी आनन्द में
पर तुम्हें तो मुझे बांधना भर था
या शिकायतें करनी थी।
मेरे प्रति अब तक के
ज्ञान के वशीभूत हो तुम
कभी भर जाने दिये होते मुझे।