मन बन गया युद्धभूमि
मन बन गया युद्धभूमि
जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आती हैं
जब निर्णय लेने की बारी आती है
निर्णय कभी होता है बड़ा तो कभी छोटा
हर कदम पर है निर्णय लेना पड़ता।
कोई निर्णय से मिलता सुख तो किसी से दुःख
पर इसे मुकम्मल करने से पहले तू ज़रा रुक
इसका प्रभाव पूरे परिवार पर भी है होता,
तू मत बन इतना भावूक न सहना इतना
जो तेरे बस में ना हो, तू मत रहना मूक।
ऐसा ही एक मोड़ आया मेरे जीवन में
घबराहट और हलचल मची थी मेरे मन में
तरह-तरह के सवाल आते रहे
क्या करूँ क्या ना करूँ सताते रहे
मन बन गया मेरा युद्धभूमि,
उलझनो में जूझती रही।
कई लोग सूझाव देते रहे, सब की सलाह थी उनके अनुसार
क्या मैं बलि चढ़ जाऊँ? और हो जाऊँ न्यौछावर?
या छोड़ दूँ ईश्वर पर, ख़ुद की सोच आज़माकर
और कर दूँ उस कागज़ात पर अपने हस्ताक्षर!
निर्णय लेना थोड़ा कठिन और दुविधा युक्त था
पर मेरे ख़ुद के और परिवार के लिए बेहतर होगा
भविष्य का सोचकर आख़िर निर्णय मैंने ले ही लिया
सबकी भी थी सहमति, नहीं था उसमें स्वार्थ।
सही निर्णय वही, ना हो कभी पछतावा और ना हो कभी कोई रंज।