मलंग मन
मलंग मन
जब बहे बसंती पवन अलसाए तन
होली के संग बावरा हो गया ये मन,
गुझिया,वड़ा,मिठाई और ठंढाई
होली के उन्माद को बढ़ाता भंग :
मधु छात से भर गए मकरन्द
होली के गीतों में प्रेम के छंद,
पैरों की थिरकन में है जंग
मन नाचने लगा हो के मलंग :
चहु ओर सखी बाजे मृदंग
रँग से भीगे अंग अंग,
छा रहा है चतुर्दिक अनंग
फ़ैल रही मस्ती की तरंग :
यादगार बन जाए ये सारे रँग
तरु ले उमंग ज्यों वस्त्र हुए तंग,
उद्वेलित होकर हुए अतरंग
मैं खेलूं होरी अपने साँवरे के संग!

