मजदूर वही, मजबूर वही
मजदूर वही, मजबूर वही
जिनके कर्मठ हाथों से,
कितनो के स्वप्न साकार हुए,
महान हुए बनवाने वाले,
इनके तो हाथ गए।
इतिहास वही, वर्तमान वही,
भोगा है जिसने सारे कष्ट,
सही समझा तूने,
मजदूर वही, मजबूर वही।
बना भव्य इमारत कितने,
ये सोया रहा सड़कों पर,
वाहन,सड़क बना कर इसने,
पैदल हीं नापा सारा जगत,
सही समझा तूने
मजदूर वही, मजबूर वही।
अन्न उपजा पेट भरा सबका,
स्वयं भूखे सो जाता है,
बच्चे वस्त्रहीन,
पत्नी का न कोई श्रृंगार,
भूख से वह छटपटाते हैं,
पालतू जानवरों से भी बद्तर,
जीवन वह बिताते है,
सही समझा तूने,
मजदूर वही, मजबूर वही।
इनके बनाये चीज़ों से,
हम सुविधायुक्त जीवन बिताते हैं,
जीवन पथ पर बार-बार,
इनकी परीक्षा ली जाती है,
मौका मिल जाता जिनको,
वही लूटना इसे चाहते हैं,
अपनी बेबस आँखों से वह,
रो भी नही पाते हैं,
सही समझा तूने ,
मजदूर वही, मजबूर वही।
अपने भोग-विलास में डूबे,
कर्त्तव्य सारे भूले हुए
इनकी सेवा में गुलाम हो
वो हैं नित् लगे हुए,
काटते दुः स्वप्न में जीवन,
दुःखद अंत वो पाते हैं,
कभी सड़कों पर,कभी घरों में,
भूखे वो मर जाते हैं,
सही समझा तूने,
मजदूर वही, मजबूर वही।
अपने अरमानों का वो
पता भी न पातें हैं
बच्चे, पत्नी, माँ - बाप,
सभी का बोझ उठाते हैं,
उम्र से पहले वो,
वृद्ध नज़र आते हैं,
निर्माता होकर भी,
वह मजदूर कहलाते हैं,
इनकी वेदना को कौन समझता,
केवल बातें होती हैं,
सभी अपना मतलब निकालते,
अपनी रोटी सकते हैं,
इनके हाल पर छोड़ इनको,
घड़ियाली आँसू रोते हैं,
पर यह लड़ता - मरता,
जीवन जीता रहता है,
सही समझा तूने,
मजदूर वही, मजबूर वही।
क्या बदलेगा वक्त,
समय क्या वह आयेगा ?
मजदूर अपने हक को,
क्या किसी दिन पायेगा ?
अन्न उपजाने वाले भूखे मरते,
लूटने वाले पालक कहलाते हैं,
दिन रात कर्मनिष्ठ वो,
मृतक सा जीवन बिताते हैं,
आओ समझे उनको,
उनका हक प्रदान करें,
राजनीति से ऊपर उठ,
उनके लिए कुछ काम करें।
