मजदूर बंद
मजदूर बंद
डियर डायरी
ये मजबूर है या
मजदूर ये कमजोर है
या मजबूत चंद रोज से
दिहाड़ी नहीं
ये आपदा है
या मगरुर।
पास पैसे नहीं
ना ही बसें हम ही
हम क्यों है फंसे
वो अफवाहों से हैं
घरों में
हम भिखारी
से हैं दरों में।
