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संदीप राज़ आनन्द

Tragedy

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संदीप राज़ आनन्द

Tragedy

मजदूर और भगवान

मजदूर और भगवान

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मजदूर...

जो बनाता है महल

जो दूसरे के खेत में रोपता है धान

फैक्टरियों में बनाता है औजार 

करता है सृष्टि 

इस दुनिया की भौतिक वस्तुओं का

लेकिन यह मजदूर नहीं रहता महल में

ना ही खाता है अपना रोपा हुआ धान

ना ही मांगता है

भौतिकतावादी सुख-सुविधाएं

मजदूर जी लेता है

अपनी सारी जिंदगी 

फुटपाथ किनारे झुग्गी में

बिल्कुल चुपचाप 

बिना किसी इच्छा के

ठीक वैसे ही 

जैसे सब कुछ बनाने वाला भगवान

रह लेता है मंदिर में 

और अल्लाह 

मस्जिद में।


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