प्यार की परिधि
प्यार की परिधि
मैंने उससे पूछा-
तुम मुझसे कितना प्यार करती हो?
उसने कहा,
इतना जितना कोई किसी से नहीं करता।
मैं उसके चेहरे को देखने लगा,
मैंने फिर पूछा-
फिर भी कितना!
उसने अपने दोनों हाथों की परिधि को बढ़ाते हुए कहा,
इतना...... इतना...... इतना......
बहुत ज्यादा
मुझे लगा कि वह मजाक कर रही है
कोई प्यार करे
फिर जता भी न पाएं
वह किसी से कितना प्यार करता है
यह तो गलत है।
प्यार का कुछ तो हिसाब होना चाहिए
कोई रिश्ता बिना हिसाब किताब कैसे चल सकता है?
उसने अब यही सवाल मुझसे पूछा
चलो, मैं प्यार नहीं करती!
तुम तो करते हो
अपना हिसाब बता दो,
मैं उंगलियों पर हिसाब करने लगा
मुझे लगा,जैसे मैं गिनती भूल गया हूं।
फिर सोचा, तौल के देख लूं
शायद!कुछ हिसाब मिल जाएं
अब मैं इस हिसाब किताब से थक गया था
मैंने भी आंखें झुकाकर अब वही कहा
इतना...... इतना...... इतना......
बहुत ज्यादा
मुझे ज्ञात हुआ
प्यार संख्यावाचक, परिमाणवाचक नहीं होता
प्यार गुणवाचक और भाववाचक होता है।

