ग़ज़ल
ग़ज़ल
बिना सोचे ये क्या क्या कह रही हो
मुझे तुम भी निकम्मा कह रही हो
भुला दूँ यार तुमको आज से मैं
सुनो ! अब तुम जियादा कह रही हो
तुम्हारे गोद में है सर हमारा
इसे तुम अब भी सपना कह रही हो
बिछड़ के तुमसे खुश रहना है मुझको
बहुत अच्छा ये जुमला कह रही हो
चलो आनन्द की गलती बता दो
बिना जाने ही इतना कह रही हो।

