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Karishma Gupta

Abstract

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Karishma Gupta

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मजबूरियाँ

मजबूरियाँ

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 जो ना होती मेरी ये मजबूरियाँ,

 तो ना सहती तेरी मैं ये नादानियाँ ।

 

न समझा कोई न जाना कोई,

कि क्या है मेरे मन में बेचैनियाँ ।

 

जो रोका हवा ने तो रुक सी गई मैं, 

जो दिखा रास्ता तो बढ़ती गई ।


हुई ओझल राह तो ठहरी रही मैं, 

यूँ ही बढ़ती रही ये खामोशियाँ।


जो ना होती मेरी ये मजबूरियाँ,

तो ना सहती तेरी मैं ये नादानियाँ ।


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