मजबूरियाँ
मजबूरियाँ
जो ना होती मेरी ये मजबूरियाँ,
तो ना सहती तेरी मैं ये नादानियाँ ।
न समझा कोई न जाना कोई,
कि क्या है मेरे मन में बेचैनियाँ ।
जो रोका हवा ने तो रुक सी गई मैं,
जो दिखा रास्ता तो बढ़ती गई ।
हुई ओझल राह तो ठहरी रही मैं,
यूँ ही बढ़ती रही ये खामोशियाँ।
जो ना होती मेरी ये मजबूरियाँ,
तो ना सहती तेरी मैं ये नादानियाँ ।
