मजबूर आदमी।
मजबूर आदमी।
उस इंसान से पूछो कितना मुश्किल होता होगा
बरसात में अपने घर वालों का पेट पालना।
जिसकी घर की छत घास की बनी है
बारिश का पानी उस छत को चीर कर अंदर की
सतह को गीला कर रहा है।
ना खाने का सामान, ना रोने को आंसू
बस वह खुद बाहर जाकर थोड़े खाने की आस में
तूफ़ान से लड़ रहा है।
ये सब आसान नहीं होता सहना
जिसपर बीतती है वह जानता है।
तुम मानो न मानो मगर वो ईश्वर को
ज़रूर मानता है।।