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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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मिट्टी

मिट्टी

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कभी सोचा न था

यों धरती को सांस लेने के लिये भी

पहनना होगा मास्क।


मिट्टी से मिट्टी तक का सफर करने वाले

हम मानवों का मन भी मिट्टी ही है।

अपने ही अस्तित्व को मिट्टी बनाने वाले को

न कहूँ मूढ़ तो और क्या कहूँ ?


और,

कभी ये भी सोचा न था

कि यों मिट्टी को सांस लेने के लिये भी

पहनना होगा मास्क।


बहरहाल,

आओ ! सब मिलकर आरोप लगाएं,

मिट्टी की धरा पर ही,

क्योंकि वह हमारी भूख नहीं मिटा पा रही।


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