STORYMIRROR

Shailaja Bhattad

Abstract

3.5  

Shailaja Bhattad

Abstract

मित्र

मित्र

1 min
77


हवन की आहुति बनता नहीं अब।  

नीलाम हवाओं से डरता नहीं मन। 

लाजवाब हो गई है जिंदगी मेरी।   

जिंदा हूँ का एहसास  जो कराते हैं मित्र सब।


हौसले हर शिकस्त के बाद भी बुलंद है। 

दोस्तों के साथ ने किया ऊंचा मेरा कद है।


Rate this content
Log in