Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Preeti Sharma "ASEEM"

Classics

5.0  

Preeti Sharma "ASEEM"

Classics

मिलने सागर से चली

मिलने सागर से चली

1 min
279


मैं नदी

प्रेम का आलंबन लिए,

पर्वत की गोद से, 

मिलने सागर से जब चली।


मैं नदी

जीवन को,

प्रेम जल से सिंचित करती।

छोटे-छोटे नदी -नालों को भरती।


 समृद्धि की,

फसल को पोषित करती।

अपने कर्म को,

अपने फर्ज से परिभाषित करती।


मैं जीवन को जीवित

निरन्तर करती।

पवित्रता का

भाव मन में भरती।


मैं नदी

मिलने सागर से जब चली।

मन में उमंग उल्लास लेकर।

जन कल्याण का,

अमर ख्याल लेकर।


पहाड़ों से जिस जोश से नीचे ढली

अमृत जलधारा,

फिर तो आगे-आगे

कचरे के संग वही।


मैं स्वच्छता का माध्यम 

गंदगी बहाने का साधन बनी।

कहीं कचरा मुझ में बहाया जाता।

कहीं गंदे नालों का,

गंद मुझ में समाया जाता।।


कहीं फैक्ट्रियों का,

प्रदूषित गंदा पानी।

मेरे अमृत जल को,

विष बनाया जाता।


कहीं पूजन सामग्री,

विसर्जन का माध्यम

मुझे बनाया जाता।


मेरी राह को,

कचरे का ढेर,

हर शहर गाँव से,

निकलते ही बनाया जाता।


जिस उमंग से चली,

मैं कहां सागर से मिली।


मैं तो गंदगी के बहाव में,

 राह में ही सूखी रही।

मैं कहां सागर से मिली।


मैं नदी !

कहाँ रही ?

आत्मकथा मेरी,

आत्महत्या हो चली।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics