SURYAKANT MAJALKAR

Romance

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SURYAKANT MAJALKAR

Romance

मिलन की आरजू

मिलन की आरजू

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एक और शाम तन्हा हो गयी।

बारिश में भीगी यादें ताजा हो गयी...


कही तुम मिले थे, भरे बाजार में।

नैना लड़ गये थे, भीड़भाड़ में।


ना मैं जानता था, तेरे बारे में।

ना तू जानती थी, मेरे बारे में।


चलते कदमों को फिर दिल ने रोक लिया।

जरा सा मैंने इशारा किया, तुमने मुस्कुराया।


किसी न किसी बहाने हम मिलते रहे।

इश्क के बादल, रोज बरसते रहे।


पल भर का मिलन में शाम ढलने लगी।

मिलन की आरजू में रात जगने लगी।


खत मिलते गये, खबर होने लगी।

न जाने कब दूरियां बढ़ने लगी।


इस तरह अचानक क्या हो गया।

किसी दिन पता चला, विवाह हो गया।


बेकसूर थी मेरी हर बाते पुरानी।

जरूर मजबूरी भर लाई आँखों में पानी।


सुना मैंने किस्से पुराने और हकीकत कल की।

प्यार में कम होती है संभावना मिलन की।


जिन्हे मिले मेहबूब, समझो खुदा की मेहर है।

दिल टूटने कि शिकायत जरूर है।


बहाने से कोई, कभी चक्कर लगाता हूँ।

बादल गरजने लगे तो, यकीनन जाता हूँ।


कही खुदा मेहरबान तो, तेरा दीदार हो।

भीगी भीगी पलको में, तेरा इंतजार हो।


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