महसूसियत
महसूसियत
ज़िन्दगी करीब
महसूस होती है
जब तुम पास मेरे
होते हो साँस लेती है
देह मेरी जब तुम मेरे
नज़दीक होते हो ये
जानते हुए भी फिर क्यों
तुम रोज रोज मुझ से यूँ
दूर चले जाते हो कि बुलाऊँ
तो आवाज़ मेरी वापस
मेरे पास लौट आती है
हाथ बढ़ाऊँ तो खाली
हथेली लौट आती है
मेरी सी हो जाओ ना
अब तो तुम फिर मेरे
ही इर्द गिर्द रहो तुम
कुछ ऐसे ही मेरी सी
हो कर मुझे महसूस
होती रहो ना तुम !