महसूस किया है
महसूस किया है
माना कि मैं नजर के सामने नहीं, मगर तुमसे
दूर भी तो नहीं, मैंने तो हर शै में तुम्हें महसूस किया है
भोर के उगते सूरज के ताप में,
ढलते सूरज के सांझ की लालिमा में तुम्हें महसूस किया है
माथे पर लगी बिंदी जब पाक बोसे सी लगे तो
उस बोसे के लम्स में तुम्हें महसूस किया है
मैंने जब भी पहनी गुलाबी साड़ी,
मुझ पर खिलते गुलाबी रंग की रंगत में तुम्हें महसूस किया है
एक तरफ कांधे पर ढलके गेसूओं के हवाओ में
बिखर जाने की शरारत में तुम्हें महसूस किया है
किसी बच्चे की निष्पाप, निश्चल,
मासूम मुस्कुराहट में तुम्हें महसूस किया है
मेरे लिखे हर एक नज्म के हफऺ हफ॔ में तुम्हें महसूस किया है
क्या तुमने भी कभी इस तरह मुझे महसूस किया है ?
जिस तरह मैंने तुम्हें महसूस किया है
माना कि मैं नजर के सामने नहीं,
मगर तुमसे दूर भी तो नहीं,
मैंने तो हर शै में तुम्हें महसूस किया है।