बहन की तरह
बहन की तरह
मैं सिर्फ एक शरीर नही हूँ, अपने घर का मान हूँ
भाई का अभीमान हूँ, तुम्हारी ही बहन की तरह...
घूरती निगाहों से छलनी क्या उसे भी करते हो यूँ ही,
मुझे सरे राह आते जाते किया करते हो हर रोज
जिस तरह....?
क्या मौजूदगी में तुम्हारी वो भी डर कर पल्लू
ठीक किया करती है ,
तुम्हारी मेरे बदन को भेदती नज़रों से सहम कर
दूपट्टा ठीक करती हूँ मैं जिस तरह...
बहन है ना तुम्हारी वो कुछ नहीं करती होगी, मेरी तरह
बांधती होगी वो कलाई पर जब राखी तुम्हारी....
तुम्हारी आँखों में सदा रक्षा की भावना ही रहती है...
ये तुम्हारी रक्षा की भावना जो घर से निकलने से
पहले होती है,
बाहर किसी और की राखी देख वासना में
क्यूँ बदल जाती है.....?
माना की नही हूँ मैं बहन तुम्हारी मगर किसी की
बहन तो हूँ ही ना तुम्हारी बहन की तरह...
मैं सिर्फ एक शरीर नही हूँ,अपने घर का मान हूँ
भाई का अभीमान हूँ, तुम्हारी ही बहन की तरह.....