फरिश्ते सी होती है मां
फरिश्ते सी होती है मां
परियां तो ख्वाबों में होती है,
हकीकत की धरा पर तो सी फरिश्ते सी होती है मां
संकटों और संघर्ष की धूप में जब भी जली मैं
दिलासे का आंचल कर संतावना का छाया करती है मां
मुश्किलों की शीलाओ से ठोकर
खाकर जब कभी लड़खड़ा कर गिरी मैं
हौसलों का मरहम लगाती सामने होती है बस मां
मेरी बातों को भी नहीं मेरी खामोशियों को भी
सुन लेती है गुमसुम सी जब भी होती हूं मैं
बिन कुछ कहे भी पढ़ लेती है मेरे मन की उलझने,
जाने कैसे मेरी सारी उलझनों को
पल भर में ही सुलझा देती है मां
जब कभी जिंदगी के थपेडो़ से थक सी जाती हूं मैं
प्यार की थपकी देती,लोरी सुनाती कानों मे मीठी सी
सुकून घोलती मिश्री की डली सी लगती है मां
परियां तो ख्वाबों में होती है, हकीकत की
धरा पर तो फरिश्ते सी होती है मां।