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मनोज सिंह 'यशस्वी'

Tragedy

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मनोज सिंह 'यशस्वी'

Tragedy

महंगाई

महंगाई

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देख जरा देख आज के महंगाई को, 

मुँह फाड़े खड़ा ये जैसे कोई दैत्य !

बचत भागे फिर रही बचाने को जान,

देख जरा देख आज के महंगाई को ! 


रोटी भी शर्माने लगी नई दुल्हन सी,

दाल बह जाये जैसे नद में मिलना है ! 

प्राणवायु भागे फिर रही इस उलझन से, 

देख जरा देख आज के महंगाई को !


सागर रूप लिए खिलखिलाया डॉलर अब, 

उठा उठा के नित पटकता रूपया को ! 

पहलवान भी शरमाजाये अखाड़ों में, 

देख जरा देख आज के महंगाई को !


बिन जल मछरी तड़पे जैसे जनता,

राजनीति जाल में फसाएँ नेता अब ! 

जीएसटी ही अब धर्म, कर्म, शर्म सब है,

देख जरा देख आज के महंगाई को !


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