महंगाई
महंगाई
देख जरा देख आज के महंगाई को,
मुँह फाड़े खड़ा ये जैसे कोई दैत्य !
बचत भागे फिर रही बचाने को जान,
देख जरा देख आज के महंगाई को !
रोटी भी शर्माने लगी नई दुल्हन सी,
दाल बह जाये जैसे नद में मिलना है !
प्राणवायु भागे फिर रही इस उलझन से,
देख जरा देख आज के महंगाई को !
सागर रूप लिए खिलखिलाया डॉलर अब,
उठा उठा के नित पटकता रूपया को !
पहलवान भी शरमाजाये अखाड़ों में,
देख जरा देख आज के महंगाई को !
बिन जल मछरी तड़पे जैसे जनता,
राजनीति जाल में फसाएँ नेता अब !
जीएसटी ही अब धर्म, कर्म, शर्म सब है,
देख जरा देख आज के महंगाई को !
