रावण क्यों जलाये
रावण क्यों जलाये
मन गर काला तो, स्नेह बाती क्यों जलाये।
है मुखौटा मेरा फिर, वो दिया क्यों जलाये।।
सारी उम्र हमने, तेरी पूजा की मगर।
नफरत दिल में रखा, फिर रावण क्यों जलाये।।
माँगा हमने सबका, जीवन ज्योतिर्गमय हो।
फिर मन में बुराई का, दीपक क्यों जलाये।।
चाह रहा है यशस्वी, बस लोगो से यही।
प्यार रहे यहाँ, रहम की चिता क्यों जलाये।।
