महकते हम
महकते हम
होठों की हँसी अश्क मेरी आँखों के महक उठते हैं,
धुआं अंधेरे का दूर करने को कहीं दूर चिराग जल उठते हैं।
तुम्हें देख कर मेरी जमीं मेरे कदमों के नीचे नहीं ठहरती
और कदम आसमां पर चलने को बेचैन हो उठते हैं।
तुम्हारी खुशबू से फूल सभी आसमां को सजाते हैं,
और तारे जमीं की गोद में आकर चमक उठते हैं।
एक शमा है जो तेरे मेरे बीच इस कदर रोशन है
कि उसी शमा से हम दोनों के साये भी महक उठते हैं।
सांसो ने सांसों को क्या गज़ल पेश की, क्या पता,
पर जिस्म महक उठता है जब धड़कनों पर सजे साज बज उठते हैं।
