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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Inspirational

महिलावार

महिलावार

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बात बात में एक बात हो गयी

सामाजिक सोंच की शुरुआत हो गयी

दिन रविवार था भरा पूरा परिवार था

छूटी मनाने का सबका अलग विचार था


बिटिया ने आवाज लगाया

दादी बुआ भाभी चाची माँ 

सबको अपने पास बुलाया


सबसे एकसाथ एक प्रश्न उठाया

क्या आपलोग भी कभी बिटिया थी ?

मेरे जैसा अपने पापा की गुड़िया थी ?


सबकी एक साथ एक ही प्रतिक्रिया

यह क्या अजीब सवाल है !

कौन सा नया बवाल है !


आपकी माँ का अपना पूरा परिवार था !

आपकी माँ का अपना कोई रविवार था !


ऐसा क्यों होता है ?

परिवार नर-नारी दोनो का होता है

रविवार केवल पुरुष का होता है


क्यों न एक शुरुआत करें

अपनी भी कुछ बात करें


औरतें खप जाती

परिवार बनाने में , चलाने में

औरतें तरस जाती

रविवार पाने को, मनाने को

सप्ताह में एक बार

महीने में चार बार

साल में अड़तालीस बार

कब आता है कब जाता है

हर परिवार में रविवार

महसूसने को तरस जाती


परिवार वाली दादी

परिवार वाली माँ

परिवार वाली भाभी

परिवार बनाने वाली पत्नी


पुरुषों जननी को इतना तो सम्मान दो

साप्ताहिक ना सही महवारी रविवार दो

परिवार को परिवार समझो

उसका भी रविवार समझो


1911 में शुरू महिला दिवस

है साझा विश्व संकल्प

चलो दें नया विकल्प


महीने का अंतिम रविवार

परिवार में हो महिलावार


ऐसी एक शुरुआत हो

महीने में एक महिलावार हो

महीने का जब आखिरी रविवार हो


दात्री को देने का संकल्प होना चाहिए

मातृ को लेने का विकल्प होना चाहिए !!



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