खुद्दारी
खुद्दारी
अति गरीब तन कृष दुर्बल ,
हमने देखा है मनुज एक ।
मन से अमीर मेहनत में रत ,
जो मिटा रहा विधि का है लेख।।
जीवन के इस पड़ाव में भी ,
है मांगना उसे मंजूर नहीं ।
मेहनत का ही वह है खाता ,
रखता हराम पर नजर नहीं ॥
छोटी सी उसकी है दुकान ,
जो चलती उसके संग सदा।
वो मन का मौजी मतवाला,
ईश्वर है उसका रखवाला ॥
इनके प्रति अपना कर्म यही ,
इनसे सामान खरीदे हम ।
सामान हमें मिल जाएगा,
इनका भी पेट पल जाएगा ।।
ऐसे लोगों पर गर्व करो यह ,
शान बढ़ाते भारत की ।
इनका वंदन जयकार करो ,
यह कृती अलौकिक ईश्वर की ॥