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Sudershan kumar sharma

Romance

4  

Sudershan kumar sharma

Romance

महबूबा

महबूबा

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महबूब या महबूबा बनाने के लिए हर दाम लगाना पड़ता है, 

शाहजहाँ ऐसे नहीं कह देते लोग, ताज बनाना पड़ता है। 


प्रीत पतंगे की ऐसे नहीं गिनी जाती, वफा साबित

करने के लिए खुद को जलाना पड़ता है। 


किस का मन करता है, इस दूनिया से विदा होने 

को, नहीं चाह कर भी, सभी को जाना पड़ता है। 


कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना पड़ता है, चैन,

सुख सब खो जाता है, मेहनत करना पड़ती है

दिनभर रात देर को सोना पड़ता है। 


पत्थर बन कर गुजारा नही होता, मोम की तरह

नर्म होना पड़ता है, इस दूनिया दारी की खातिर सब कुछ खोना पड़ता है। 

आपने आप नहीं मिट जाता अंधेरा जिंदगी का, 

बुझे दीपक में डाल कर तेल हर पल टिम टिम करके रोना पड़ता है। 


राह प्रेम की सबके वश की बात नहीं, कुछ पल हँस कर, पल पल रोना

पड़ता है। 

मुश्किल से मिलती है छाया विरान रेगिस्तान में सुदर्शन, मन को तपा

कर तन के साये में खोना पड़ता है। 


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