मेरी व्यथा
मेरी व्यथा
न मैं पार्टिसिपेंट हूँ ,
न मुझे गाना आता है..
घर में कभी अपनी मायूसी दूर करने के लिए
तो कभी अकेलेपन से भागने के लिए
गुनगुनाना आता है..
स्वर, लय, ताल,
ढोल, मंजरे, थाल,
क्या परिभाषा है इनकी
दूर दूर तक अता पता नहीं है मुझको..
मुझे तो कभी बाथरूम में घुस कर
नल के पानी की आवाज
तो कभी झाड़ू बर्तन के संगीत के
साथ सुर मिलाना आता है...
अनजान हूँ सा रे ग म प जैसे सात सुरों से
खुद की खुशी में खुशी के और
मन उदास होने पर गम के,
किसी के दूर चले जाने पर विरह के
और आने की उम्मीद में मिलन के,
थोड़ा स्प्रिचुअल होने पर
भजन और सुंदर कांड
कभी थोड़ा नरवस होने पर
मुकेश का वॉल्यूम 1 गुनगुना लेती हूं
"एक वो भी दीवाली थी, एक ये भी दीवाली है
उजड़ा हुआ गुलशन है रोता हुआ माली है"
या फिर
"मैंने दिल दिया था रखने को
तूने दिल को जला के रख दिया"