मेरी उलझने मेरा संघर्ष
मेरी उलझने मेरा संघर्ष
कैसे सुलझाऊँ उन धागों को,
जो बहुत पहले से उलझे हुए हैं,
जब जब सोचता हूँ,
एक नई छलांग लगाने की,
मेरी उलझने मुझे और जकड़ लेती हैं।
नहीं मालूम अभी जो छाले हैं
मेरे पाँव में वो कब तक लहू,
उगल कर मेरी मेहनत का जवाब देंगे,
बस अभी एक उम्मीद ही है,
जो मुझे जिंदा रखे हुए हैं।
वो उम्मीद जो हमेशा एक,
चिंगारी का काम करती है,
मेरी उलझनों से जूझकर मुझे,
छलांग लगाने का हौसला देती है,
वो हौसला जो मुझे जज्बा देता है,
वो सब पाने का जो मुझसे दूर है।
