मेरी उड़ान
मेरी उड़ान
मैं बिन डोर के पतंग की तरह दूर उड़ना चाहती हूँ
आकाश की सारी ऊंचाइयां पलकों से छूना चाहती हूँ
दुनिया जिस चाल भी चले अपनी रवानी में
मैं मस्ती से अपनी ही चाल से चलना चाहती हूँ
मेरे सपने मेरे अपने हैं औरों से क्या मुकाबला
मैं अपने सपनों को खुद ही साकार करना चाहती हूँ
मैं चट्टानों से टकराई हूँ बिना जज़्बा खोये
हर कदम पर अपनी मंज़िल खुद ही चुनना चाहती हूँ
मैंने तिनके तिनके चुनकर आशियाना एक बनाया है
दुनिया जहाँ के जज़्बातों से दूर रहना चाहती हूँ
हैं हौसलों से भरी मेरी हसरतें, मन में हैं अरमान
है यक़ीन खुद पर मुझे उलझनें खुद सुलझाना चाहती हूँ
मेरे मन की आवाज़ सदा यह दस्तक देती है
"संगर्ष है तेरी ताकत" वह ताकत आज़माना चाहती हूँ
बाधाएँ कितनी भी आ जाये, रुकेंगे नहीं अब कदम
हर उगते सूरज के साथ ताल मिलाके चलना चाहती हूँ
बिन मकसद यह ज़िन्दगी कभी नहीं जीना चाहती हूँ मैं
याद करें मर कर भी मुझे ऐसी पहचान बनाना चाहती हूँ
