मेरी प्रिये
मेरी प्रिये
हाँ प्रिये,
तुम हो सीधी-सादी सी
गोरा मुखड़ा चाँद का टुकडा़
और सूरत भोली-भाली सी
गुस्सा हरदम नाक पर रहता
फिर भी मेरे दिल की रानी तुम।
हाँ प्रिये,
तुम।मृगनयनी , काली जुल्फें
नैनो से बाण चलाती तुम
और धड़कन मेरी रक जाती
जब गुस्से से लाल टमाटर हो जाती तुम
फिर भी मेरे दिल की धड़कन तुम।
हाँ प्रिये,
तुम हो गुलाब मेरी बगिया का
जिसके आने की खबर पहले ही
हवा की खुशबू दे जाती है
काँटो सी चुभती कभी ये खुशबू
फिर भी मेरे आँगन की तुलसी तुम।
हाँ प्रिये,
तुम पढ़ी-लिखी सुशिक्षित नारी
हर काम मे बराबरी करती तुम
जीरो फिगर की चाह तुम्हें है
और मुझे भी सलाद खिलाती तुम
फिर भी मेरी रसोई की मालिक तुम।
मेरी प्रिये,
नाराज़ ना हो, आगे भी सुनो
तुम हो चाँद मेरी कविता का
मेरी नजरों से कभी देखो तुम
जीवन खुशियों से भर जाता है
जब हौले से मुस्काती तुम
मेरे जीने का आधार भी तुम।
हाँ प्रिये
तुम ही मेरी प्राण प्रिये
तुम ही मेरी जीवन संगिनी
मेरी नोंक झोक तुम से ही प्यारी
मेरी कविता तुम से ही बनती
मेरी और मेरी कविता की शान हो तुम।