मेरी कलम
मेरी कलम
मेरी कलम से मेरा है नाता पुराना
बचपन से अब तक है अपना याराना
जब जब हम साथ हैं होते
एहसास शब्दों में पिरों से जाते
मन के ख्यालों में एक लहर सी उठती
वो विचार कलम के जरिए पन्नों में उतरती
हर बार नए विचार हैं उभरते
कलम के संग मिलकर हैं पूरे होते
कभी अलग रूप कभी अलग किरदार
तेरे कारण कविता लिखती जोरदार
तुम मेरी भावनाएं मेरी ख्यालात लिखती
मेरे अनछुए सब जज्बात लिखती
जिन विचारों में मैं खोई सी रहती
उनको तुम यथार्थ रूप देती
दुनिया कहां समझ है पाती
सजीवता का तुम एहसास कराती
खुद का परिचय कहां हो देती
ये तो हमारा ही परिचय करवाती
हर गम को है लिख देती
खुशी बयां है कर देती
सब के विचारों को झकझोरती
समाज में बदलाव है लाती
जो हम जुबां से कह ना पाते
वह कलम सब कुछ है कह देती
युग परिवर्तक हो जाती तेरी छवि
सृजन में तुम हो जाती मेरी कवि
माना तुम हो निर्जीव सी
पर कांति लाती हो सजीव सी
अपनी धुन में जब चलती हो
बहुतों के मन को खलती हो
सबको अधिकार दिलाती हो
सबका भविष्य उज्ज्वल बनाती हो
तुम जन-जन की हो आवाज
मेरे मन का बन जाती साज
आज भी तुम बहुत ही याद आती हो
कागज पर ना सही ख्यालों में तो आती हो।