मेरी जिन्दगी
मेरी जिन्दगी
कैसे कहूँ ऐ जिन्दगी बस कुछ ख्वाहिशें अधूरी हैं
कुछ तो चाहत थी मेरी और कुछ मजबूरी हैं।
सच्चाई के राह में चलने की कोशिश है
भलाई का कर्म करने की कोशिश है।
मतलबी हो दुनिया तो क्या मुझे तो सत्य प्यारा है
कर्म का फल किसी और का कहाँ ये तो हमारा है।
कहे दुनिया कुछ भी ये धर्म हमारा है
भलाई का हर कार्य मुझे बहुत प्यारा है
जानता हूँ ऐ जिन्दगी लौट के कल आने वाला नहीं
वक्त गया लौट के आने वाला नहीं।
