मेरी डायरी में...!!
मेरी डायरी में...!!
मेरी डायरी में....
कितने सालों से कैद हो तुम
कहीं शब्दों के बीच में
आंसुओ की बूंद से
स्याह से फैले हो तुम,
कहीं मेरे अल्फाज बन के
तो कभी मेरे
दिल की आवाज बन के
हर पन्नों में गूंजते हो तुम,
कभी कभी तो किसी पन्ने पे
तुम्हारे होने का एहसास होता है
न जाने कहां होगे तुम सहर में
यूं ही साथ होने का गुमा होता है,
कभी दिल के साथ
आंखें भी रो उठती हैं
तो कभी बेख्याली में भी
ख्याल आते होठों पे मुस्कान होता है।