मां
मां
मेरे दो नन्हें मुन्ने शैतान से बच्चे हैं
जिनके शरारतों के अद्भुत किस्से हैं
मां मां बोल वो दिन भर मुझपे प्यार लुटाते है
साथ ही अपनी नटखट आदाओ से हँसा
बदले में न जाने कितनी शैतानियां कर जाते हैं।
घर के हर कोने में आड़ी तिरछी रेखाओं को उकेर
अपना कैनवास बना रंगों से खेला करते हैं
अक्सर ही फर्श पे अपने खिलौने बिखेर
कभी प्रेम तो कभी एक दूसरे से उलझे रहते हैं।
बिखरे घर को समेटती
तो कभी चादर की सिलवटों को ठीक करती
अक्सर मैं झुंझला जाया करती हूं
तब समझ आया मां अपने चेहरे की सिलवटों में
तुमने मेरा बचपन छुपाया है।
अपनी गलतियों और शैतानियों को
अपने नन्हें मुन्नो में जब से पाया है
उनकी परछाईयो में खुद को
और खुद में मां हमेशा तुमको ही पाया है
सच कहूं तो आज समझ आया है
कैसे मुश्किलों में भी तुमने मां
मुझपे अपना प्यार लुटाया है।
इन्हीं खट्टी मीठी बातों से
यादों का खूबसूरत काफिला सजाया है
सोची कुछ आपसे भी सांझा कर लूं
मां के किरदार को थोड़ा खुल के जी लूं।
हमेशा से मां को हम सबने सबसे पहले पुकारा है
मगर सच कहूं
इन बच्चो ने ही हमें मां होने का पाठ पढ़ाया है
सच में कितना मुश्किल मां का किरदार निभाना है
आज मां बन कर ही मैंने इस एहसास को जाना है।
