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Surekha Awasthi

Classics

4  

Surekha Awasthi

Classics

मेरी बेटी

मेरी बेटी

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मेरे पहले गर्भ की चाह 

हो जाये मुझे एक बेटी 

अपनी काल्पनिक बेटी अपनी गुड़िया को 

खूब सँवारा और अपने साथ सुलाया था 

जब मै थीं अपने माँ की बेटी 


जब नन्ही सी परी आयी मेरी गोद में  

मैंने पुकारा उसको बेटी  

उसके नन्हें पाव ने खूब दौड़ाया 

उसकी नटखट अदा ने खूब लुभाया 

वो नन्ही परी मेरी बेटी 


मेरी जिम्मेदारियों ने जब ललकारा मुझे 

बिन माँ के पल गयी मेरी बेटी 

मेरे हर आंसू और संघर्ष की 

चश्मदीद गवाह हुयी मेरी बेटी 

पर आज मुझसे बात नहीं करती 


हर वक्त नाराज रहती है मेरी बेटी 

कहती है क्यों पैदा किया क्यों सहा संघर्ष 

जब संभलती नहीं आपसे आपकी बेटी 

क्यों पैसों के लिए दौड़ी 


क्यों काम पे अपना वक्त गुजारा 

हम भूके रहते हम अभाव में रहते 

पर बिन माँ के ना पलती तेरी बेटी 

क्या बताऊँ मेरी लाडो 


कि हर सुख देने की ख्वाहिश में  

मैंने झोक दिया अपना जीवन 

अब जब वो समझी 

तो मुझे गलत समझती है मेरी बेटी 

बेटियों को दुख सहना किस्मत की बात है 


इस बात को मै झुटलाना चाहती थीं 

तेरे कदमो मे हर खुशियां लूटना चाहती थी मेरी बेटी 

आज तुझे सब व्यर्थ लगता है 

आज सब दिखावा हो गया 

तू छोटी थी ना तो बिन कहे 


परवाह की थी मैंने तेरी मेरी बेटी 

शायद अब कभी उसका बचपन 

मैं लौटा ना पाऊँगी 

शायद उसके दिल में जगह

 अब कभी बना ना पाऊँगी 

आज मुझसे नाराज है 


मुझे नफ़रत से देखती है मेरी बेटी 

पर मै फिर भी तेरी ढाल हूँ  

तेरे सफलता की दौड़ मे तेरीचाल हूँ 

तेरे तेज दौड़ते कदम कभी 


इस राह पे ठोंकर खाएंगे नहीं 

हर कदम पर फूलों का चादर बिछाऊँगी मेरी बेटी 

तू खुश रहना तू मशरूफ रहना 

मुझसे नाराज सहीं पर महफूज रहना मेरी बेटी 

तेरी माँ ने तुझे बहुत प्यार किया बहुत चाहा 


तेरे ही भविष्य के लिए दुनिया का दर्द सहा 

मै तुझसे नाराज नहीं, बस शर्मिंदा हु 

हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मेरी बेटी 

हो सके तो मुझे माफ़ कर देना मेरी बेटी।


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