स्त्री
स्त्री
नीरा शून्य सी स्थिति मेरी
जीव होकर ना कोई जीवनी मेरी
समाज का हिस्सा होकर
अधूरी अनकही सी शख़्सियत मेरी
क्यों समाज में मेरा कोई स्थान नहीं
क्यों औरत होकर मेरा कोई मक़ाम नहीं
क्यों समाज में मिलता मुझे सम्मान नहीं
क्यों प्रेम की मूरत हो मेरी कोई पहचान नहीं
मेरे पास दिल है आत्मा भी है मेरी
सब की चाह ख्वाहिश और मेरा कोई अरमान नहीं
नीरा शून्य सी स्थिति मेरी
जीव होकर ना कोई जीवनी मेरी
तुमने होश में थामी थीं कलाई मेरी
फिर ये स्थिति क्यों समाज ने बनायीं मेरी
क्यों आज मेरा प्यार एक स्वार्थ का दर्पण है
क्यों अपवित्र मेरा समर्पण है
क्यों अकेलापन बन गयी किस्मत मेरी
क्यों साथ चाहना तुम्हारा,
बेशर्मी है मेरी
क्या दोष क्या अन्याय किया है मैंने
क्यों तुम डरते हो क्या पाप किया है तुमने
क्या मैं इंसानों की तरह इंसान नहीं
या इंसानियत पे दाग़ है इंसानियत मेरी
नीरा शून्य सी स्थिति मेरी
जीव होकर ना कोई जीवनी मेरी....
