मेरी अजान थी वो !
मेरी अजान थी वो !
मैं उसे इतना
चाहता था,
ऐ उसे भी नहीं
मालूम था,
अंधेरों के बिना जैसे
रातें अधूरी
होती
हैं,
वैसे ही उसके
बिना मैं !
मेरी खुद कि
पहचान थी वो,
मैं जिन्दा था
क्योंकि मेरी जान थी वो,
मेरी मुस्तकबिल,
मेरी आशिया
मेरी अजान थी वो,
मुझमें मेरी
परछाई
मेरा प्रान थी वो,
वो जानती
थी कि
उसके बिना मैं
एक छड़ भी,
मैं मैं ना हू...
मेरे सपनो के
पँख वाली
तितली जैसी
विमान थी वो,
मैं जिन्दा था
क्योंकि मेरी जान थी वो...
मेरी आशिया
मेरी अजान थी वो !