मेरे पिता मेरा अभिमान
मेरे पिता मेरा अभिमान
हौसले आपके मौजूद हैं, मेरे किरदार में,
परोपकार आपसे सीखा, अपने व्यवहार में,
हिम्मत का अर्क मिलाकर पिलाया, आपने संस्कार में,
धैर्य और वक्त का मर्म समझाया, जीवन के आधार में।
मेरे प्यारे पापा के व्यक्तित्व का, खूबसूरत हिस्सा हूं मैं,
उनकी जिंदादिली और मुस्कान का अंश,"स्मिता" हूं मैं।
इक्कीस सावन के इंद्रधनुषीय रंग, आपकी उंगली पकड़कर देखे है,
परिस्थितिजन्य संघर्ष की मिट्टी में दबकर भी,
बीज बनकर उभरने के गुण आपसे सीखे हैं,
हां !कई बार जिंदगी के थपेड़े थकाते बहुत है,
लेकिन आपकी सुदृढ़ परवरिश की शिक्षाओं के, कवच बचाते बहुत हैं।
जानती हूं मां बाप कहीं नहीं जाते, वो आपके साथ रहते है,
कभी मुस्कानों, कभी आशीर्वादों, कभी सत की मंद बयारों में आपके साथ बहते हैं,
हां ! कभी आपके मजबूत कंधों की कमी आज भी जब महसूस करती हूं,
आत्मजा मैं आपकी, मन के एक कोने में,
मेरे प्यारे पापा ! आपके निःस्वार्थ वात्सल्य के वटवृक्ष तले बैठती हूं।
आप आधार मेरे अस्तित्व का इस धरा पर, इस सौभाग्य को शीश नवाती हूं,
आपके सत्कर्म के वटवृक्ष तले, मेरे प्यारे पापा! आज भी जीवन की खुशियां पाती हूं।
