STORYMIRROR

Vivek Netan

Abstract

4  

Vivek Netan

Abstract

मेरे झोपड़े को ना फूंक दो

मेरे झोपड़े को ना फूंक दो

1 min
365

मंदिर मस्जिद पर राय पूछते हो मुझसे 

मैंने कब खाया था ये भी तो पूछ लो 

माना की रोशन करना है महल आपने 

इसके लिए मेरे झोपड़े को ना फूंक दो 


करते है मेरे फैसले चंद लोग मिल के 

मुझे क्या चाहिए मुझ से तो पूछ लो 

रोज लिखते हो हालात भूखो के  

कभी भूखे से नजर मिला के देख लो 


दुत्कार देते हो फकीर को दरवाजे से 

एक बार उसके मरे जमीर से पूछ लो 

कैसा होता है दर दर की ठोकरें खाना 

सहम जाओगे, सोच के तो देख लो 


ललचाई नजरो से देखते को जिन जिस्मो को 

बेबसी पूछनी हो तो उनके चीथड़ों से पूछ लो 

भूख कैसे मार देती है हर रिश्ते नाते को 

अपनी बेटी को बेचती किसी माँ से पूछ लो 


चलता फिरता तो हूँ में रोज इस शहर में 

मर चुका हूँ, चाहो तो मेरी रूह से पूछ लो 

अपनी ही नजरों में गिर जाओगे यकीनन 

कभी अजनबी बन अपने घर का पता पूछ लो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract