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Dr. Vijay Laxmi

Abstract Romance

4.5  

Dr. Vijay Laxmi

Abstract Romance

मेरे हमसफर

मेरे हमसफर

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332


ए मेरे हमसफर, ओ जाने जिगर,

जिधर देखती उधर आते नजर ।


कभी कहती कुछ दिल की धड़कन,

तो कभी बजती सांसों की सरगम ।


तुम ही से तो सृजित ये मेरा जीवन,

है प्रफुल्लित बगिया का कन-कन।


तन मन अर्पण के इंद्रधनुष सतरंगी ,

हर शय के जादुई आयाम हो बहुरंगी।


हर रिश्ता तुम्हारा ही दिया एक नाम ,

तुम्हें देख, रहा न कोई, गम का काम।


मातृत्व का सुखद भाव तुमसे है पाया,

किसी की बहू होने का गौरव समाया।


पिता से पालक, कभी प्रेमी मनभाये,

कभी भावविह्वल बच्चों से नजर आये। 


सूर्य से तप्त कभी पूनम चांद से निश्छल

मांग का सिन्दूर माथे की बिंदिया अटल


तुम अगर साथ ए मेरे मधु हमसफर 

कायनात सी चमकती है जीवन डगर


जीवन सन्ध्या की ढलती वो रात आये,

तेरे ही कांधे हो सवार ये दुल्हन जाये। 


मेरे गीतों की गजल, हो शबनमी चाहत,

राह भी ,राहत भी, तरानों की इबादत ।

   


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