STORYMIRROR

Rajendra Jat

Romance

4.5  

Rajendra Jat

Romance

मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र

1 min
368


मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफर

साथ चलना मेरे, परछाई मेरी बनकर।

मैं हमराही तेरी, रहूं सदा संग तेरे "आइना" बनकर।


दुःख और दर्द की ये शाम ढल जाएगी,

अंधेरी रात कब तक यूं ठहर पाएगी।

खुशी की सुबह फिर से मुस्कुराएगी।

मेरे हमसफर, मेरे हमसफर

साथ चलना मेरे, परछाई मेरी बनकर।


दूरियां भी, नजदीकियों सी लगने लगी

स्वप्न भी अपने से लगने लगे 

Advertisement

d-color: rgba(255, 255, 255, 0);">अब तो खामोशियों से "मैं" बातें करने लगी 

मन ही मन मैं मुस्काने लगी 

मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र 

साथ चलना मेरे, परछाई मेरी बनकर 


कदमों से कदम मिलाया मैंने 

साथ निभाएंगे हम, कसमें खाई हमने

सपनों को अपने जी लूंगी 

हर सितम मैं सह लूंगी 

तेरी मुस्कराहट बनकर

मेरे हमसफ़र, मेरे हमसफ़र

साथ चलना मेरे परछाई मेरी बनकर।


Rate this content
Log in

More hindi poem from Rajendra Jat

Similar hindi poem from Romance