मेरे देश के लाल
मेरे देश के लाल
पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान।
कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान।
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान।
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान।
आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने।
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कल कल करतीं।
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती।
हल की नोकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं।
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती।
रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने।
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी।
विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी।
मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी।
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी।
ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने।
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
जहाँ पढ़ाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना।
जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना।
जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना।
बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना।
उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने।
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
