मेरे भीतर
मेरे भीतर
मेरे भीतर कही दूर
अब भी इक बच्चा बसता हैं
जो खो देने से डरता है
जो एकाकीपन से डरता है
जिसे भय हैं तिरस्कृत होने का
जिसे भय हैं सब खो देने का
जो आलोचना से डरता है
प्रशंसा के लिये मचलता हैं
मेरे भीतर कही दूर
अब भी इक बच्चा बसता हैं
देखे तो है तुमने मेरे
पशु और मानवी दोनों रुप
क्या कभी पशु मेरे भीतर का
मेरी मानवता पर हँसता हैं
यह सच हैं मै निर्दोष नही
तम तो मुझमें भी बसता हैं
पर मेरे भीतर कही दूर
अब भी इक बच्चा बसता हैं
जो नही जानता लोक नीति
जिसको होती हैं सहज प्रीति
जो बस भाव निखरता हैं
शब्दों को कहाँ समझता है
सच मेरे भीतर कही दूर
अब भी इक बच्चा बसता हैं।