मेरे अपने !
मेरे अपने !
आज़ाद मुल्क में कैद हैं ख्याल,
यह कैसी दिखावे की तेरी देखभाल
कोहिनूर, सोना चांदी लूटा था उन गैरों ने तो
अपनों ने तो भरे बज़ार अस्मत के नंगे नाच का ढिंढोरा
अब जब कुछ नहीं बचा लूटने को, नोचने को
मान प्रतिष्ठा, आबरू सब बेआबरू कर दिया
तो अब हमारी आज़ादी का ख्याल भी कैद करने की सोच रहे हो,
खबरदार ! इंसान की खाल में जानवर,
तुम सिक्कों के कारखाने के कारीगर
अपने कपड़ों पर गंदी सोच,
घटिया इरादों का इत्र छिड़कते तुम झूठे, तुम मक्कार,
देखो-समझो ओ आवारा -गँवारो !,
कोयले की खान में मेहनत-लगन का निरंतर पाठ सिखाते ये मज़दूर निरक्षर
ज़रा कभी इनके तन से बहते पसीने से मुँह धोकर आओ,
मैं तो नहीं, पर क्या पता उस परवरदिगार को ही
दया आ जाये देखकर तुमको, की
देखकर तुम्हारे ये हालात मौत ही बक्श दे
तुम्हारे भीख के कटोरे में उबलते पाप के समुद्र को।
