मेरे अपने
मेरे अपने
आज जेहन में यूं ही कुछ ख्याल आया
मीठे मिठाई के डिब्बे अनगिनत ले आया
पास ही घर के कुछ चंद कदमों की दूरी पर
था एक वृद्ध आश्रम
जिस में रहने वाले थे वृद्ध बहुत मध्यम कम
सोचा आज चलकर महफिल वहीं जमाऊँगा
"पतझड़ के मौसम "से जो हैं वे मुरझा गए
बसंत बहार जीवन में उनके ले आऊंगा
खिल उठेंगे उनके आशाहीन लकीरों भरे चेहरे
लगे हैं जिन पर बरसों से उदासी के पहरे
काम यह नेक पुण्य का कर आऊंगा
होकर अंजाना मैं उनको अपना बना जाऊंगा
तिरस्कृत कर गए जिनको अपने उनको यहां!!!
होंगे कैसे मुक्त वे पाप से इस
उनके लिए होगा ऐसा कौन सा जहां!!!
उनके उपकार पालन का ऋण क्या कोई चुका पाएगा!!
समय का पहिया है जो फिर से घूम जाएगा!!
दरकिनार करके इनको जो मस्ती में डूब जाएंगे!!
आने वाली पीढ़ी साथ उनके यही दोहराएंगे!!!