क़ायनात
क़ायनात


हर आह का जवाब देती है
हर चाह का जवाब देती है
यह क़ायनात कभी माँ का
दुलार देती है
कभी बाप की डांट देती है ..
कुछ पहेली सी है
और कुछ सहेली सी है
मैं पूछूं कौन हूँ मैं?
वह कहती मेरा हिस्सा है तू ..
मैं पूछूं क्या हूँ मैं?
वह कहती मेरा किस्सा है तू
मेरा सबब क्या है?
कहती है तू मुझे पहचान ले ..
मैं पूछूं कैसे ?
तो कहती है अपने आपको
जान ले
क्या होगा हासिल?
कहती है मिलेगी मंज़िल ..
और इस भंवर में जो फंसी हूँ !
थोड़ा और सब्र कर
यह भंवर ही ले जायेगा
तुझे साहिल तक ...
हर आह का जवाब देती है
हर चाह का जवाब देती है
यह क़ायनात मेरे भटके
क़दमों के सवालों को
राह बन के जवाब देती है