शायद
शायद
अब तो शायद ही कोई मोहब्बत करे हमसे
वीरानों से हैं दिल के दर 'ओ 'दीवार।
यूँ खण्डरों में क्यों कोई बसेरा बनाएगा
क्यों सोचेगा कोई अपनी दुनिया रोशन हमसे।
हमारी नज़रों में अब टिमटिमाती हुयी उमंगें जो नहीं
बस ढलते हुए कुछ वक़्त के सिरे है।
जिससे हम साँसों से खींचते हैं
अब तो शायद ही कोई मोहब्बत करे हमसे।