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Rishika Inamdar

Inspirational Others

5.0  

Rishika Inamdar

Inspirational Others

रूहानी जुगलबंदी

रूहानी जुगलबंदी

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गुमराह : 


किसको आती है मसीहाई, किसे आवाज़ दूँ 

बोल ऐ खून -खार तन्हाई, किसे आवाज़ दूँ 

चुप रहूँ तो हर नफ़स दासता है नग्न की तरह 

कहने में है रुस्वाई, किसे आवाज़ दूँ

ऊफ ख़ामोशी की यह आग दिल को बरमति हुई 

ऊफ यह सन्नाटे की शहनाई, किसे आवाज़ दूँ


रिशिका रकीब :


ना आवाज़ दे अब किसी को न किसी से अब उम्मीद रख 

इस बे -पर्दा दुनिया से अब अपने ज़ख्मो को छुपा के रख

यहाँ कौन सुनेगा तेरी क्यों सुनेगा तेरी सबब सब का अपना है 

ना किसी का साहिल है तू ना किसी की मंज़िलों पे तेरा हक़ 

फना हो जा उस एक में जिसकी है यह ज़मीन यह फलक 

ना आवाज़ दे अब किसी और को

चलता जा उसकी राह में मिले न वह जब तलाक 


गुमराह :


ज़ख्म छुपा तो लूं मैं दुनिया से, दर्द का क्या करूँ ?

बार बार ये कम्बख्त मेरी आँखों से छलक जाता है 


दिल की आवाज़ को मैं सुनाना भी नहीं चाहता किसी को 

पता नहीं कैसे उड़ते परिंदो को फिर भी पता चल जाता है 

उसकी राह में तो बरसों से चला जा रहा हूँ बे -झिझक 

ये कम्बख्त दिल ही कुछ पाने की उम्मीद लगाए जाता है 


रिशिका रकीब :


हर दर्द -इ -एहसास को तू इबादत में तब्दील कर 

नज़रें मिला ले तू उस एक से, नज़रे नूर को तू कामिल कर 


जो उड़ते हैं वह तेरे खौफ हैं 

उन्हें अब आसमानो में आज़ाद कर 


जो तेरा होकर न कभी खोयेगा 

उस एक पर तू हौसला -बुलंद कर 


गुमराह :


किस नज़र से नज़र मिलाऊँ उससे 

गुनाहों की गिनती अभी बाकी है 


नींद उड़ जाती है पीछे देखकर 

बीते दिनों की बातें मुझे सताती हैं 

काश के खौफ के पंख होते,

 उड़ा देता 

ये ज़ेहन में बादल की तरह छाये हैं


जो मेरा होकर ना खोयेगा कभी भी 

मेरी आँखें मुझे अब तक उसकी राह दिखती हैं 


रिशिका रकीब :


तूने जो किया वह पायेगा ज़रूर 

जिसकी यह क़ायनात है इन्साफ के लिए है वह मशहूर 


मोहताज है उसकी रेहम तेरे गुनाहों की 

तेरे बिना वह भी तो खुदा हो नहीं सकता 

मगर जो अब तेरा इरादा पाक है 

तो उसकी नज़रे कर्म में रहम भी है ज़रूर 


जो उठाये थे तूने शिकवों के पत्थर कभी 

जिन सुलगते अरमानो से तूने राख समेटी थी कभी 

उनको अब अपनी राह में बिछा कर चलता जा हो कर बेख़ौफ़ बे -सुरूर 

तू क्या करता क्या न करता क्या ऐसा होता जो मैं यह न करता 

फ़िक्र है तेरी सोच में अबतक

तोड़ दे इन ज़ंजीरों को कदम बढाता जा

जाना है अब बस तुझे और थोड़ा दूर 


वह भी तेरा तलबगार है उससे भी तेरा इंतज़ार है 

अँधेरे कहाँ है रास्ते 

सुलग रही अब तुझमें भी वह ख्वाहिश 

जल रहा है हर सु उसका नूर 


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