अजीब सी मुलाकात है
अजीब सी मुलाकात है
एक अधूरी सी दास्तान
शुरू हुई है
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।
मानो जैसे हम जानते हैं
एक दूसरे को अरसों से
जैसे कोई अपनी चीज़ मिली हो
वहीं जहाँ राखी थी संभाल के बरसों से
मगर ये कल ही की तो बात है।
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।
ये इबतिदा है या सिलसिला
हम अनजान हैं या थे
या होंगे दोबारा,
ये किस्सा अपना अधूरा है
रहेगा या होगा पूरा
जाने दो छोड़ दो इतना क्या सोचना
ये सब बेकार की बात है।
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।
मैं तब भी तुम्हारा नाम नहीं जानती थी
और ना आज तुमसे कोई पहचान हुई है
यूँ लुक्का छुप्पी खेल रहे हैं मगर
जैसे एक ही मोहल्ले में कभी
इशारों में बातें हर शाम हुई हो।
तुम्हारे हौसले बुलंद तब भी थे
और रास्ते बदल गए थे हमारे,
छत पे किया कोई चुप चाप सा वादा नहीं
एक दूसरे में अब मंज़िल पाने या खोने की बात है।
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।
तुम वक़्त बेवक़्त सवाल करते
जवाबों का मोल अपने तजुर्बे से लगाते हो,
हमने कुछ कह भी दिया
तो हमसे हमारा हक़ पूछते हो।
ये सवाल जवाब
और यूँ जवाब के बदले इंतज़ार करवाना
जैसे जज़्बात नही तिजारत की बात है।
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।
एक अधूरी सी दास्तान शुरू हुई है
एक अजनबी से
अजीब सी मुलाकात है।